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Friday, June 13, 2025
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tajmahalnews,10 जून 2025 को सम्पन्न हुआ “शहज़ादा आसिफ़ ख़ान मुमताज महल फ़ेस्टिवल” – एक सांस्कृतिक संगम

 

tajmahalnews,बुरहानपुर, 12जून 2025 — ऐतिहासिक नगर बुरहानपुर में दिनांक 10 जून को “शहज़ादा आसिफ़ ख़ान मुमताज महल फ़ेस्टिवल” का भव्य आयोजन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। यह महोत्सव भारतीय सांस्कृतिक, भाषायी और साहित्यिक धरोहर के संरक्षण और उत्सव का सजीव प्रतीक बना। देश के कोने-कोने से पधारे विद्वान, कलाकार, साहित्यकार, पत्रकार, राजनेता, उद्यमी एवं समाजसेवी इस महोत्सव का हिस्सा बने।

कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत सुबह 11:30 बजे मैक्रो विज़न अकैडमी, बुरहानपुर में एक विचारशील सेमिनार के साथ हुई, जिसकी अध्यक्षता भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के प्रशासनिक अधिकारी श्री दीपक पाटिल जी ने की। उन्होंने अपने उद्बोधन में सांस्कृतिक समरसता, विरासत और पार-सांस्कृतिक अध्ययन की वर्तमान समय में प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।

इस अवसर पर विशेष अतिथि के रूप में राष्ट्रीय उर्दू दैनिक अख़बार ‘हिंदोस्तान’ के प्रतिष्ठित संपादक सरफ़राज़ आरज़ू जी उपस्थित रहे, जिन्होंने उर्दू पत्रकारिता की ऐतिहासिक भूमिका और सामाजिक चेतना में उसकी भागीदारी पर गहन विचार साझा किए।

कार्यक्रम में भोपाल से पधारे वरिष्ठ शायर सिराज ख़ान, फिल्म अभिनेत्री साइबा शर्मा, फिल्म निर्देशक तबरेज़ ख़ान, अभिनेता फरहान ख़ान, उद्योगपति शकील ख़ान ग़ौरी, शिक्षाविद् डॉ. जलील-उर-रहमान, डॉ. फ़रज़ाना आसिफ़ अंसारी, डॉ. बुद्ध प्रकाश मूर्ति, और समाजसेविका श्रीमती प्रीति सिंह राठौर सहित लायंस क्लब बुरहानपुर के अनेक सदस्य उपस्थित रहे।

सेमिनार में वक्ताओं ने भारतीय संस्कृति की विविधता, विभिन्न भाषाओं के पारस्परिक प्रभाव, कविता, संगीत, चित्रकला और पत्रकारिता के माध्यम से संस्कृति के प्रसार पर अपने विचार रखे। यह चर्चा विशेष रूप से इस बात पर केंद्रित रही कि किस प्रकार विविध सांस्कृतिक तत्वों के अध्ययन से राष्ट्रीय एकता को बल मिलता है और सामाजिक सौहार्द्र की भावना प्रबल होती है।

इस समारोह में उपस्थित कलाकारों और शिक्षाविदों ने इस बात पर बल दिया कि ऐतिहासिक नगर बुरहानपुर में ऐसे महोत्सवों का आयोजन केवल अतीत की स्मृतियों को जीवंत करने भर का माध्यम नहीं है, बल्कि यह नव पीढ़ी को सांस्कृतिक चेतना से जोड़ने की प्रेरणा भी है।

“शहज़ादा आसिफ़ ख़ान मुमताज महल फ़ेस्टिवल” न केवल सांस्कृतिक समर्पण का उत्सव रहा, बल्कि यह एक ऐसा मंच बना जहाँ विचार, संगीत, कविता, पत्रकारिता और शिक्षा एकत्रित हुए और सांस्कृतिक संवाद की शुरुआत हुई। कार्यक्रम का संचालन डॉ वासिफ़ यार ने की.

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कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत सुबह 11:30 बजे मैक्रो विज़न अकैडमी, बुरहानपुर में एक विचारशील सेमिनार के साथ हुई, जिसकी अध्यक्षता भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के प्रशासनिक अधिकारी श्री दीपक पाटिल जी ने की। उन्होंने अपने उद्बोधन में सांस्कृतिक समरसता, विरासत और पार-सांस्कृतिक अध्ययन की वर्तमान समय में प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।

इस अवसर पर विशेष अतिथि के रूप में राष्ट्रीय उर्दू दैनिक अख़बार ‘हिंदोस्तान’ के प्रतिष्ठित संपादक सरफ़राज़ आरज़ू जी उपस्थित रहे, जिन्होंने उर्दू पत्रकारिता की ऐतिहासिक भूमिका और सामाजिक चेतना में उसकी भागीदारी पर गहन विचार साझा किए।

कार्यक्रम में भोपाल से पधारे वरिष्ठ शायर सिराज ख़ान, फिल्म अभिनेत्री साइबा शर्मा, फिल्म निर्देशक तबरेज़ ख़ान, अभिनेता फरहान ख़ान, उद्योगपति शकील ख़ान ग़ौरी, शिक्षाविद् डॉ. जलील-उर-रहमान, डॉ. फ़रज़ाना आसिफ़ अंसारी, डॉ. बुद्ध प्रकाश मूर्ति, और समाजसेविका श्रीमती प्रीति सिंह राठौर सहित लायंस क्लब बुरहानपुर के अनेक सदस्य उपस्थित रहे।

सेमिनार में वक्ताओं ने भारतीय संस्कृति की विविधता, विभिन्न भाषाओं के पारस्परिक प्रभाव, कविता, संगीत, चित्रकला और पत्रकारिता के माध्यम से संस्कृति के प्रसार पर अपने विचार रखे। यह चर्चा विशेष रूप से इस बात पर केंद्रित रही कि किस प्रकार विविध सांस्कृतिक तत्वों के अध्ययन से राष्ट्रीय एकता को बल मिलता है और सामाजिक सौहार्द्र की भावना प्रबल होती है।

इस समारोह में उपस्थित कलाकारों और शिक्षाविदों ने इस बात पर बल दिया कि ऐतिहासिक नगर बुरहानपुर में ऐसे महोत्सवों का आयोजन केवल अतीत की स्मृतियों को जीवंत करने भर का माध्यम नहीं है, बल्कि यह नव पीढ़ी को सांस्कृतिक चेतना से जोड़ने की प्रेरणा भी है।

“शहज़ादा आसिफ़ ख़ान मुमताज महल फ़ेस्टिवल” न केवल सांस्कृतिक समर्पण का उत्सव रहा, बल्कि यह एक ऐसा मंच बना जहाँ विचार, संगीत, कविता, पत्रकारिता और शिक्षा एकत्रित हुए और सांस्कृतिक संवाद की शुरुआत हुई। कार्यक्रम का संचालन डॉ वासिफ़ यार ने की.

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कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत सुबह 11:30 बजे मैक्रो विज़न अकैडमी, बुरहानपुर में एक विचारशील सेमिनार के साथ हुई, जिसकी अध्यक्षता भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के प्रशासनिक अधिकारी श्री दीपक पाटिल जी ने की। उन्होंने अपने उद्बोधन में सांस्कृतिक समरसता, विरासत और पार-सांस्कृतिक अध्ययन की वर्तमान समय में प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।

इस अवसर पर विशेष अतिथि के रूप में राष्ट्रीय उर्दू दैनिक अख़बार ‘हिंदोस्तान’ के प्रतिष्ठित संपादक सरफ़राज़ आरज़ू जी उपस्थित रहे, जिन्होंने उर्दू पत्रकारिता की ऐतिहासिक भूमिका और सामाजिक चेतना में उसकी भागीदारी पर गहन विचार साझा किए।

कार्यक्रम में भोपाल से पधारे वरिष्ठ शायर सिराज ख़ान, फिल्म अभिनेत्री साइबा शर्मा, फिल्म निर्देशक तबरेज़ ख़ान, अभिनेता फरहान ख़ान, उद्योगपति शकील ख़ान ग़ौरी, शिक्षाविद् डॉ. जलील-उर-रहमान, डॉ. फ़रज़ाना आसिफ़ अंसारी, डॉ. बुद्ध प्रकाश मूर्ति, और समाजसेविका श्रीमती प्रीति सिंह राठौर सहित लायंस क्लब बुरहानपुर के अनेक सदस्य उपस्थित रहे।

सेमिनार में वक्ताओं ने भारतीय संस्कृति की विविधता, विभिन्न भाषाओं के पारस्परिक प्रभाव, कविता, संगीत, चित्रकला और पत्रकारिता के माध्यम से संस्कृति के प्रसार पर अपने विचार रखे। यह चर्चा विशेष रूप से इस बात पर केंद्रित रही कि किस प्रकार विविध सांस्कृतिक तत्वों के अध्ययन से राष्ट्रीय एकता को बल मिलता है और सामाजिक सौहार्द्र की भावना प्रबल होती है।

इस समारोह में उपस्थित कलाकारों और शिक्षाविदों ने इस बात पर बल दिया कि ऐतिहासिक नगर बुरहानपुर में ऐसे महोत्सवों का आयोजन केवल अतीत की स्मृतियों को जीवंत करने भर का माध्यम नहीं है, बल्कि यह नव पीढ़ी को सांस्कृतिक चेतना से जोड़ने की प्रेरणा भी है।

“शहज़ादा आसिफ़ ख़ान मुमताज महल फ़ेस्टिवल” न केवल सांस्कृतिक समर्पण का उत्सव रहा, बल्कि यह एक ऐसा मंच बना जहाँ विचार, संगीत, कविता, पत्रकारिता और शिक्षा एकत्रित हुए और सांस्कृतिक संवाद की शुरुआत हुई। कार्यक्रम का संचालन डॉ वासिफ़ यार ने की.

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कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत सुबह 11:30 बजे मैक्रो विज़न अकैडमी, बुरहानपुर में एक विचारशील सेमिनार के साथ हुई, जिसकी अध्यक्षता भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के प्रशासनिक अधिकारी श्री दीपक पाटिल जी ने की। उन्होंने अपने उद्बोधन में सांस्कृतिक समरसता, विरासत और पार-सांस्कृतिक अध्ययन की वर्तमान समय में प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला।

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इस समारोह में उपस्थित कलाकारों और शिक्षाविदों ने इस बात पर बल दिया कि ऐतिहासिक नगर बुरहानपुर में ऐसे महोत्सवों का आयोजन केवल अतीत की स्मृतियों को जीवंत करने भर का माध्यम नहीं है, बल्कि यह नव पीढ़ी को सांस्कृतिक चेतना से जोड़ने की प्रेरणा भी है।

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