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Saturday, August 2, 2025
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Rang Panchmi Festivel : बुरहानपुर के आदिवासी बाहुल्य धूलकोट में अनूठे ढंग से मनाई जाती है रंगपंचमी

Rang Panchmi Festivelबुरहानपुर (भारत चौहान) मध्यप्रदेश के महाराष्ट्र सीमावर्ती बुरहानपुर जिले के आदिवासी बाहुल्य धूलकोट में रंगपंचमी का पर्व अनूठे अंदाज में मनाए जाने की परंपरा है जिला मुख्यालय बुरहानपुर से 35 किलोमीटर दूर धूलकोट में यह अनूठी परंपरा पीढियों से मनाई जा रही है रंगपंचमी पर धूलकोट में आदिवासी समाज व्दारा जो अनूठी परंपरा है उसे स्थानीय भाषा में झेंडा प्रथा कहते है
क्या होती है झेंडा प्रथा
आदिवासी बाहुल्य धूलकोट में रंगपंचमी पर जो अनूठी परंपरा है उसे झेंडा प्रथा कहते है इसमें एक मैदान में 7 फीट लंबी लकडी जमीन में गाडी जाती है पुरूषों का समूह इस लकडी पर लाल कपडे की गठरी में नारियल को पांच बार लकडी पर बांधते है और उतारते है इस बीच महिलाए पुरूषों की टोली पर बेशर्म के पौधे की हरी हरी सोटिया (डालिया) से जमकर हमला करती है धूलकोट क्षेत्र में यह प्रथा रंगपंचमी पर काफी धूमधाम से मनाई जाती है इस परंपरा में महिलाए पुरूषो पर बेशर्म के पौधो की डालियों से हमला कर उन्हें जमकर भांजती है झेंडा प्रथा में कोई भी पुरूष चाहे वह नेता हो अधिकारी हो या फिर पुलिस अफसर सभी महिलाए उन्हें बेशर्म की डालिया से जमकर भांजती है महिलाओं के इन हमलों से बचने के लिए पुरूष भागते नजर आते है जब यह प्रथा शुरू होती है तो माहौल पूरा रोमांचित हो जाता है सभी लोग हंस हंस कर लोट पोट हो जाते है
इस परंपरा के बाद सब एक दूसरे को रंगपंचमी की बधाई देते है साल में एक बार होने वाले इस रोमांचित नजारे को देखने के लिए लोग दूर दूर से धूलकोट भी पहुंचते है साथ ही आदिवासी समाज के लोगों को भगौरिया पर्व के बाद रंगपंचमी पर मनाई जाने वाली इस झेंडा प्रथा का बेसब्री से इंतजार रहता है इस झेंडा प्रथा के बहान जिन लोगो के आपसी में छोटे मोटे गिले शिकवे रहते है वह भी मिट जाते है और सभी लोग एक बार फिर एकता और भाईचारे के साथ रहने का प्रण लेते है

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क्या होती है झेंडा प्रथा
आदिवासी बाहुल्य धूलकोट में रंगपंचमी पर जो अनूठी परंपरा है उसे झेंडा प्रथा कहते है इसमें एक मैदान में 7 फीट लंबी लकडी जमीन में गाडी जाती है पुरूषों का समूह इस लकडी पर लाल कपडे की गठरी में नारियल को पांच बार लकडी पर बांधते है और उतारते है इस बीच महिलाए पुरूषों की टोली पर बेशर्म के पौधे की हरी हरी सोटिया (डालिया) से जमकर हमला करती है धूलकोट क्षेत्र में यह प्रथा रंगपंचमी पर काफी धूमधाम से मनाई जाती है इस परंपरा में महिलाए पुरूषो पर बेशर्म के पौधो की डालियों से हमला कर उन्हें जमकर भांजती है झेंडा प्रथा में कोई भी पुरूष चाहे वह नेता हो अधिकारी हो या फिर पुलिस अफसर सभी महिलाए उन्हें बेशर्म की डालिया से जमकर भांजती है महिलाओं के इन हमलों से बचने के लिए पुरूष भागते नजर आते है जब यह प्रथा शुरू होती है तो माहौल पूरा रोमांचित हो जाता है सभी लोग हंस हंस कर लोट पोट हो जाते है
इस परंपरा के बाद सब एक दूसरे को रंगपंचमी की बधाई देते है साल में एक बार होने वाले इस रोमांचित नजारे को देखने के लिए लोग दूर दूर से धूलकोट भी पहुंचते है साथ ही आदिवासी समाज के लोगों को भगौरिया पर्व के बाद रंगपंचमी पर मनाई जाने वाली इस झेंडा प्रथा का बेसब्री से इंतजार रहता है इस झेंडा प्रथा के बहान जिन लोगो के आपसी में छोटे मोटे गिले शिकवे रहते है वह भी मिट जाते है और सभी लोग एक बार फिर एकता और भाईचारे के साथ रहने का प्रण लेते है

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क्या होती है झेंडा प्रथा
आदिवासी बाहुल्य धूलकोट में रंगपंचमी पर जो अनूठी परंपरा है उसे झेंडा प्रथा कहते है इसमें एक मैदान में 7 फीट लंबी लकडी जमीन में गाडी जाती है पुरूषों का समूह इस लकडी पर लाल कपडे की गठरी में नारियल को पांच बार लकडी पर बांधते है और उतारते है इस बीच महिलाए पुरूषों की टोली पर बेशर्म के पौधे की हरी हरी सोटिया (डालिया) से जमकर हमला करती है धूलकोट क्षेत्र में यह प्रथा रंगपंचमी पर काफी धूमधाम से मनाई जाती है इस परंपरा में महिलाए पुरूषो पर बेशर्म के पौधो की डालियों से हमला कर उन्हें जमकर भांजती है झेंडा प्रथा में कोई भी पुरूष चाहे वह नेता हो अधिकारी हो या फिर पुलिस अफसर सभी महिलाए उन्हें बेशर्म की डालिया से जमकर भांजती है महिलाओं के इन हमलों से बचने के लिए पुरूष भागते नजर आते है जब यह प्रथा शुरू होती है तो माहौल पूरा रोमांचित हो जाता है सभी लोग हंस हंस कर लोट पोट हो जाते है
इस परंपरा के बाद सब एक दूसरे को रंगपंचमी की बधाई देते है साल में एक बार होने वाले इस रोमांचित नजारे को देखने के लिए लोग दूर दूर से धूलकोट भी पहुंचते है साथ ही आदिवासी समाज के लोगों को भगौरिया पर्व के बाद रंगपंचमी पर मनाई जाने वाली इस झेंडा प्रथा का बेसब्री से इंतजार रहता है इस झेंडा प्रथा के बहान जिन लोगो के आपसी में छोटे मोटे गिले शिकवे रहते है वह भी मिट जाते है और सभी लोग एक बार फिर एकता और भाईचारे के साथ रहने का प्रण लेते है

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क्या होती है झेंडा प्रथा
आदिवासी बाहुल्य धूलकोट में रंगपंचमी पर जो अनूठी परंपरा है उसे झेंडा प्रथा कहते है इसमें एक मैदान में 7 फीट लंबी लकडी जमीन में गाडी जाती है पुरूषों का समूह इस लकडी पर लाल कपडे की गठरी में नारियल को पांच बार लकडी पर बांधते है और उतारते है इस बीच महिलाए पुरूषों की टोली पर बेशर्म के पौधे की हरी हरी सोटिया (डालिया) से जमकर हमला करती है धूलकोट क्षेत्र में यह प्रथा रंगपंचमी पर काफी धूमधाम से मनाई जाती है इस परंपरा में महिलाए पुरूषो पर बेशर्म के पौधो की डालियों से हमला कर उन्हें जमकर भांजती है झेंडा प्रथा में कोई भी पुरूष चाहे वह नेता हो अधिकारी हो या फिर पुलिस अफसर सभी महिलाए उन्हें बेशर्म की डालिया से जमकर भांजती है महिलाओं के इन हमलों से बचने के लिए पुरूष भागते नजर आते है जब यह प्रथा शुरू होती है तो माहौल पूरा रोमांचित हो जाता है सभी लोग हंस हंस कर लोट पोट हो जाते है
इस परंपरा के बाद सब एक दूसरे को रंगपंचमी की बधाई देते है साल में एक बार होने वाले इस रोमांचित नजारे को देखने के लिए लोग दूर दूर से धूलकोट भी पहुंचते है साथ ही आदिवासी समाज के लोगों को भगौरिया पर्व के बाद रंगपंचमी पर मनाई जाने वाली इस झेंडा प्रथा का बेसब्री से इंतजार रहता है इस झेंडा प्रथा के बहान जिन लोगो के आपसी में छोटे मोटे गिले शिकवे रहते है वह भी मिट जाते है और सभी लोग एक बार फिर एकता और भाईचारे के साथ रहने का प्रण लेते है

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