historical shiv mandir madhyapradesh के burhanpur में ऐतिहासिक अजय असीरगढ के किले में स्थित महाभारत कालीन प्राचीन शिवमंदिर में महाभारत काल का यौध्दा गुरू द्रोणाचार्य का पुत्र परम शिव भक्त अश्वत्थामा रोजाना इस शिव मंदिर में आकर हर रोज सुबह शिवमंदिर पर फुल अर्पित करने आता है कई लोग अश्वत्थामा को देखने का दावा करते है तो कई लोगों का मानना है है अश्वत्थामा असीरगढ के किले के शिवमंदिर में आते जरूर है लेकिन उन्हें देखा किसी ने नहीं है इस किवदंति को सुनकर अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए रोजाना इस मंदिर में सैंकडों की संख्य़ा में देशभर के नागरिक यहां पहुंचते है
बुरहानपुर शहर के ताप्ती नदी किनारे स्थित प्राचीन गुप्तेश्वर मंदिर जहां पर कहा जाता है अश्वत्थामा ताप्ती नदी में स्नान करके गुप्तेश्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग का जलाभिषेक करके मंदिर में ही बने बिल मार्ग सुरंग जो असीरगढ के किले पर ठीक वहीं पहुंचता है जहां महाभारत कालीन शिवमंदिर है जहां रोजाना सुबह होते ही अश्वत्थामा ताजा फूल शिवमंदिर के शिवलिंग पर अर्पित करता है ऐसी किवदंति है कि भगवान कृष्ण से श्राप मिलने के बाद अजर अमर अश्वत्थामा असीरगढ किले के इस मंदिर में रोजाना सुबह सुबह आकर फूल चढा कर ओझल हो जाता है धार्मिक मामलों के जानकार वल्लभ हीरालाल काशीवाले के अनुसार स्कंध पूराण के खंड तापी पूराण में इसका उल्लेख है अश्वत्थामा को वर्षों से कई लोगों ने असीरगढ के किले पर तो जरूर देखा लेकिन इस गुप्तेश्वर मंदिर में कभी भी किसी ने नहीं देखा जबकि ऐसी मान्यता है हर त्यौहार पर अश्वत्थामा सूर्य पुत्री ताप्ती नदी पर स्नान करके इसी गुप्तेश्वर मंदिर में अभिषेक करते है
कुछ धार्मिक मामलों के जानकारों में शामिल पंडित दत्तात्रय तारे की राय कुछ अलग है उनका कहना है यह सही है अश्वत्थामा अमर अजर है और भगवान श्री कृष्ण के श्राप के अनुसार जबतक दुनिया रहेगी वह इसी तरह भटकते रहेंगे और असीरगढ में अश्वत्थामा मौजूदगी के प्रमाण है लेकिन किसी ने उन्हें नहीं देखा क्योंकि उन्हें देखने के लिए किसी की क्षमता नहीं है
बुरहानपुर के इतिहास को करीब से जानने वाले इतिहासकार होशांग हवलदार का मानना है असीरगढ पर अश्वत्थामा का नियमित आना और भगवान शिव के मंदिर में रोज सुबह ताजा फूल चढाना बिल्कुल सही सा लगता है कई धार्मिक किताबों में इसका वर्णन है कई साल पहले एक आदिवासी युवक ने कहा था कि उन्होने अश्वत्थामा को देखा साढे सात फीट की कद काठी सफेद बाल सफेद कपडे और सफेद घोडे पर अश्वत्थामा को उसने देखा और उसकी नजरें भी पूरी तरह से सही सलामत है क्योंकि ऐसा माना जाता है अगर अश्वत्थामा को कोई देख ले और अश्वत्थामा की नजर उसकी नजरों से मिल जाए तो वह अंधा हो जाता है इस घटना के कई सालों बाद उनका असीरगढ किले पर सुबह सुबह जाना हुआ यहां के शिव मंदिर में प्रवेश करने पर नंदी पर तो धूल थी लेकिन शिव मंदिर में ऐसी सफाई थी जैसे अभी कोई यहां से दर्शन करके गया हो और फूल ऐसा अर्पित किया गया था जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता उसके बाद ऐसा फूल नहीं देखा इससे यह प्रतीत होता है कि अश्वत्थामा असीरगढ के शिवमंदिर में रोजाना सुबह सुबह आते है और फूल चढा कर चले जाते है
इस किवदंति के व्यापक प्रचार प्रसार के बाद ऐतिहासीक अजय असीरगढ किले के ऐतिहासिक प्राचीन महाभारतकालीन शिवमंदिर में अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए देश भर से रोजाना शिवमंदिर की दर्शन करने के लिए बडी संख्या में श्रध्दालुआते है श्रावण मास में और महाशिवरात्री पर बडी संख्या में लोग इस ऐतिहासिक शिव मंदिर में दर्शन करने पहुंचेत है इस मंदिर में पडोसी राज्य महाराष्ट्र, गुजरात, मप्र राजस्थान, उत्तर प्रदेश झारखंड उत्तराखंड, दिल्ली, आंध्रप्रदेश कर्नाटक तमिलनाडू और विदेशो से भी पर्यटक आते है