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Lok Sabha Election: लोकसभा चुनाव 2024 – खंडवा सीट से बीजेपी ने एक बार फिर सांसद ज्ञानेश्वर पाटील पर जताया भरोसा, दोबारा बनाया प्रत्याशी

2024 Loksabha Election : बुरहानपुर(पॉलिटिकल रिपोर्टर)। लोकसभा चुनाव में खंडवा से भाजपा ने फिर ज्ञानेश्वर पाटिल को मैदान में उतारा है। उपचुनाव में ढाई साल पहले भी ज्ञानेश्वर पाटिल को टिकिट दिया था। लंबा और बड़ा क्षेत्र होने के कारण वे ढाई साल केवल दौरे ही करते रहे। अब तक सासंद के तौर पर उनकी कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है। बावजूद इसके इस बार भाजपा (BJP)की पलड़ा भारी दिख रहा है। संगठन का उनपर दोबारा भरोसा जताने से उनके अधूरे पड़े काम अगर वो जीते तो पूरे कर सकते है। इधर (Congress Party) कांग्रेस अभी उम्मीदवार के लिए दावेदारों पर विचार ही कर रही है। वहीं भाजपा ने प्रदेश के 29 में से 24 उम्मीदवार मैदान में उतार दिए हैं।

मोदी मैजिक के बावजुद करना पड़ेगा कड़ी मेहनत

ज्ञानेश्वर पाटिल के बारे में लोगों की धारणा सामान्य व निर्विवादित व्यक्तित्व की है। संभवतः भाजपा प्रमुखों ने इसीलिए भी उनके नाम की घोषणा की है कि उपचुनाव में उन्हें क्षेत्र के विकास करने का पूरा मौका नहीं मिला। इस बार उन्हें पूरे पांच साल दिए जा सकेंगे। इसके लिए ज्ञानेश्वर पाटिल को कठिन परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ेगा।बता दें कि भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और खंडवा से सांसद रहे नंद कुमार सिंह चौहान के निधन के बाद लोकसभा उपचुनाव में ज्ञानेश्वर पाटिल को मैदान में उतारा गया था।उनके सामने कांग्रेस ने राजनारायणसिंह को टिकिट दिया था। इस चुनाव में ज्ञानेश्वर पाटिल 50 हजार के लगभग वोटों से चुनाव में विजयी हुए थे। मतलब बड़ा गड्डा हार के बावजूद कांग्रेस ने कवर किया था। इस बार भाजपा को खंडवा सीट पर कड़क मेहनत और मैनेजमेंट करना होगा। इतना ही नहीं उन्हें अपने ही पार्टी के प्रतिद्वंद्वीयों से भी निपटने की चुनौती रहेगी।

ये हैं ज्ञानेश्वर पाटिल

ज्ञानेश्वर पाटिल हालांकि खंडवा बुरहानपुर में पच्चीस साल से सक्रिय व बड़े पदों पर रहे हैं। वे खंडवा से सांसद के अलावा जिला पंचायत के अध्यक्ष, बुरहानपुर का पावरलूम संस्थाओं के प्रदेश स्तर के पदाधिकारी व उनकी पत्नी बुरहानपुर जिला पंचायत की अध्यक्ष रही हैं। बुरहानपुर से बागली तक उनको राजनीतिक पकड़ मजबूत रही है।

आखिर क्यों महाराष्ट्र और छत्तीसगढ से आ रही लकडी की बडी खेप

यह भी ध्यान में रहे

बड़ी बात यह भी होगी कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से स्व नंदकुमार चौहान लगभग बाई लाख वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी को मात देकर जीते थे। लेकिन उपचुनाव में कांग्रेस ने कड़ा मुकाबला देते हुए जीत का अंतर काफी कम कर दिया था। उपचुनाव में कांग्रेस से राजनारायण सिंह व भाजपा से ज्ञानेश्वर पाटिल चुनाव लड़े थे। प्रत्याशियों के रूप में दोनों दमदार थे। लेकिन जीत मोदी फेक्टर के करण हुई थी। आंकड़ों का इतिहास देखा जाए तो बीजेपी के समर्थक वोटर अधिक हैं। लेकिन 2009 में बीजेपी से कांग्रेस ने बाजी मार ली थी। तब कांग्रेस नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे अरुण यादव ने जीत हासिल की थी। उसका सबसे बड़ा कारण भाजपा का भितरघात रहा था। इस बार भी अगर कांग्रेस किसी बड़े चेहरे को टिकट देती है तो मुकाबला दिलचस्प हो सकता है।

उपचुनाव में कांग्रेस ने दी थी टक्कर

साल 2021 में 63.88 प्रतिशत मतदान हुआ था। ज्ञानेश्वर पाटिल खंडवा के नए सांसद तो बने, लेकिन पौने दो लाख लीड भी घटी थी। उस वक्त भाजपा के ज्ञानेश्वर पाटिल को 6 लाख 14 हजार 844 वोट मिले थे। कांग्रेस के राजनारायणसिंह को 5 लाख 40 हजार 086 बोट प्राप्त हुए थे। कुल मिलाकर लगभग 78 हजार 695 वोटों से भाजपा के ज्ञानेश्वर पाटिल विजयी हुए थे

पढिए राष्ट्रीय पक्षी मोर की खेत में क्यों हुई मौत

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2024 Loksabha Election : बुरहानपुर(पॉलिटिकल रिपोर्टर)। लोकसभा चुनाव में खंडवा से भाजपा ने फिर ज्ञानेश्वर पाटिल को मैदान में उतारा है। उपचुनाव में ढाई साल पहले भी ज्ञानेश्वर पाटिल को टिकिट दिया था। लंबा और बड़ा क्षेत्र होने के कारण वे ढाई साल केवल दौरे ही करते रहे। अब तक सासंद के तौर पर उनकी कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है। बावजूद इसके इस बार भाजपा (BJP)की पलड़ा भारी दिख रहा है। संगठन का उनपर दोबारा भरोसा जताने से उनके अधूरे पड़े काम अगर वो जीते तो पूरे कर सकते है। इधर (Congress Party) कांग्रेस अभी उम्मीदवार के लिए दावेदारों पर विचार ही कर रही है। वहीं भाजपा ने प्रदेश के 29 में से 24 उम्मीदवार मैदान में उतार दिए हैं।

मोदी मैजिक के बावजुद करना पड़ेगा कड़ी मेहनत

ज्ञानेश्वर पाटिल के बारे में लोगों की धारणा सामान्य व निर्विवादित व्यक्तित्व की है। संभवतः भाजपा प्रमुखों ने इसीलिए भी उनके नाम की घोषणा की है कि उपचुनाव में उन्हें क्षेत्र के विकास करने का पूरा मौका नहीं मिला। इस बार उन्हें पूरे पांच साल दिए जा सकेंगे। इसके लिए ज्ञानेश्वर पाटिल को कठिन परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ेगा।बता दें कि भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और खंडवा से सांसद रहे नंद कुमार सिंह चौहान के निधन के बाद लोकसभा उपचुनाव में ज्ञानेश्वर पाटिल को मैदान में उतारा गया था।उनके सामने कांग्रेस ने राजनारायणसिंह को टिकिट दिया था। इस चुनाव में ज्ञानेश्वर पाटिल 50 हजार के लगभग वोटों से चुनाव में विजयी हुए थे। मतलब बड़ा गड्डा हार के बावजूद कांग्रेस ने कवर किया था। इस बार भाजपा को खंडवा सीट पर कड़क मेहनत और मैनेजमेंट करना होगा। इतना ही नहीं उन्हें अपने ही पार्टी के प्रतिद्वंद्वीयों से भी निपटने की चुनौती रहेगी।

ये हैं ज्ञानेश्वर पाटिल

ज्ञानेश्वर पाटिल हालांकि खंडवा बुरहानपुर में पच्चीस साल से सक्रिय व बड़े पदों पर रहे हैं। वे खंडवा से सांसद के अलावा जिला पंचायत के अध्यक्ष, बुरहानपुर का पावरलूम संस्थाओं के प्रदेश स्तर के पदाधिकारी व उनकी पत्नी बुरहानपुर जिला पंचायत की अध्यक्ष रही हैं। बुरहानपुर से बागली तक उनको राजनीतिक पकड़ मजबूत रही है।

आखिर क्यों महाराष्ट्र और छत्तीसगढ से आ रही लकडी की बडी खेप

यह भी ध्यान में रहे

बड़ी बात यह भी होगी कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से स्व नंदकुमार चौहान लगभग बाई लाख वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी को मात देकर जीते थे। लेकिन उपचुनाव में कांग्रेस ने कड़ा मुकाबला देते हुए जीत का अंतर काफी कम कर दिया था। उपचुनाव में कांग्रेस से राजनारायण सिंह व भाजपा से ज्ञानेश्वर पाटिल चुनाव लड़े थे। प्रत्याशियों के रूप में दोनों दमदार थे। लेकिन जीत मोदी फेक्टर के करण हुई थी। आंकड़ों का इतिहास देखा जाए तो बीजेपी के समर्थक वोटर अधिक हैं। लेकिन 2009 में बीजेपी से कांग्रेस ने बाजी मार ली थी। तब कांग्रेस नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे अरुण यादव ने जीत हासिल की थी। उसका सबसे बड़ा कारण भाजपा का भितरघात रहा था। इस बार भी अगर कांग्रेस किसी बड़े चेहरे को टिकट देती है तो मुकाबला दिलचस्प हो सकता है।

उपचुनाव में कांग्रेस ने दी थी टक्कर

साल 2021 में 63.88 प्रतिशत मतदान हुआ था। ज्ञानेश्वर पाटिल खंडवा के नए सांसद तो बने, लेकिन पौने दो लाख लीड भी घटी थी। उस वक्त भाजपा के ज्ञानेश्वर पाटिल को 6 लाख 14 हजार 844 वोट मिले थे। कांग्रेस के राजनारायणसिंह को 5 लाख 40 हजार 086 बोट प्राप्त हुए थे। कुल मिलाकर लगभग 78 हजार 695 वोटों से भाजपा के ज्ञानेश्वर पाटिल विजयी हुए थे

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मोदी मैजिक के बावजुद करना पड़ेगा कड़ी मेहनत

ज्ञानेश्वर पाटिल के बारे में लोगों की धारणा सामान्य व निर्विवादित व्यक्तित्व की है। संभवतः भाजपा प्रमुखों ने इसीलिए भी उनके नाम की घोषणा की है कि उपचुनाव में उन्हें क्षेत्र के विकास करने का पूरा मौका नहीं मिला। इस बार उन्हें पूरे पांच साल दिए जा सकेंगे। इसके लिए ज्ञानेश्वर पाटिल को कठिन परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ेगा।बता दें कि भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और खंडवा से सांसद रहे नंद कुमार सिंह चौहान के निधन के बाद लोकसभा उपचुनाव में ज्ञानेश्वर पाटिल को मैदान में उतारा गया था।उनके सामने कांग्रेस ने राजनारायणसिंह को टिकिट दिया था। इस चुनाव में ज्ञानेश्वर पाटिल 50 हजार के लगभग वोटों से चुनाव में विजयी हुए थे। मतलब बड़ा गड्डा हार के बावजूद कांग्रेस ने कवर किया था। इस बार भाजपा को खंडवा सीट पर कड़क मेहनत और मैनेजमेंट करना होगा। इतना ही नहीं उन्हें अपने ही पार्टी के प्रतिद्वंद्वीयों से भी निपटने की चुनौती रहेगी।

ये हैं ज्ञानेश्वर पाटिल

ज्ञानेश्वर पाटिल हालांकि खंडवा बुरहानपुर में पच्चीस साल से सक्रिय व बड़े पदों पर रहे हैं। वे खंडवा से सांसद के अलावा जिला पंचायत के अध्यक्ष, बुरहानपुर का पावरलूम संस्थाओं के प्रदेश स्तर के पदाधिकारी व उनकी पत्नी बुरहानपुर जिला पंचायत की अध्यक्ष रही हैं। बुरहानपुर से बागली तक उनको राजनीतिक पकड़ मजबूत रही है।

आखिर क्यों महाराष्ट्र और छत्तीसगढ से आ रही लकडी की बडी खेप

यह भी ध्यान में रहे

बड़ी बात यह भी होगी कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से स्व नंदकुमार चौहान लगभग बाई लाख वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी को मात देकर जीते थे। लेकिन उपचुनाव में कांग्रेस ने कड़ा मुकाबला देते हुए जीत का अंतर काफी कम कर दिया था। उपचुनाव में कांग्रेस से राजनारायण सिंह व भाजपा से ज्ञानेश्वर पाटिल चुनाव लड़े थे। प्रत्याशियों के रूप में दोनों दमदार थे। लेकिन जीत मोदी फेक्टर के करण हुई थी। आंकड़ों का इतिहास देखा जाए तो बीजेपी के समर्थक वोटर अधिक हैं। लेकिन 2009 में बीजेपी से कांग्रेस ने बाजी मार ली थी। तब कांग्रेस नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे अरुण यादव ने जीत हासिल की थी। उसका सबसे बड़ा कारण भाजपा का भितरघात रहा था। इस बार भी अगर कांग्रेस किसी बड़े चेहरे को टिकट देती है तो मुकाबला दिलचस्प हो सकता है।

उपचुनाव में कांग्रेस ने दी थी टक्कर

साल 2021 में 63.88 प्रतिशत मतदान हुआ था। ज्ञानेश्वर पाटिल खंडवा के नए सांसद तो बने, लेकिन पौने दो लाख लीड भी घटी थी। उस वक्त भाजपा के ज्ञानेश्वर पाटिल को 6 लाख 14 हजार 844 वोट मिले थे। कांग्रेस के राजनारायणसिंह को 5 लाख 40 हजार 086 बोट प्राप्त हुए थे। कुल मिलाकर लगभग 78 हजार 695 वोटों से भाजपा के ज्ञानेश्वर पाटिल विजयी हुए थे

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2024 Loksabha Election : बुरहानपुर(पॉलिटिकल रिपोर्टर)। लोकसभा चुनाव में खंडवा से भाजपा ने फिर ज्ञानेश्वर पाटिल को मैदान में उतारा है। उपचुनाव में ढाई साल पहले भी ज्ञानेश्वर पाटिल को टिकिट दिया था। लंबा और बड़ा क्षेत्र होने के कारण वे ढाई साल केवल दौरे ही करते रहे। अब तक सासंद के तौर पर उनकी कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है। बावजूद इसके इस बार भाजपा (BJP)की पलड़ा भारी दिख रहा है। संगठन का उनपर दोबारा भरोसा जताने से उनके अधूरे पड़े काम अगर वो जीते तो पूरे कर सकते है। इधर (Congress Party) कांग्रेस अभी उम्मीदवार के लिए दावेदारों पर विचार ही कर रही है। वहीं भाजपा ने प्रदेश के 29 में से 24 उम्मीदवार मैदान में उतार दिए हैं।

मोदी मैजिक के बावजुद करना पड़ेगा कड़ी मेहनत

ज्ञानेश्वर पाटिल के बारे में लोगों की धारणा सामान्य व निर्विवादित व्यक्तित्व की है। संभवतः भाजपा प्रमुखों ने इसीलिए भी उनके नाम की घोषणा की है कि उपचुनाव में उन्हें क्षेत्र के विकास करने का पूरा मौका नहीं मिला। इस बार उन्हें पूरे पांच साल दिए जा सकेंगे। इसके लिए ज्ञानेश्वर पाटिल को कठिन परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ेगा।बता दें कि भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और खंडवा से सांसद रहे नंद कुमार सिंह चौहान के निधन के बाद लोकसभा उपचुनाव में ज्ञानेश्वर पाटिल को मैदान में उतारा गया था।उनके सामने कांग्रेस ने राजनारायणसिंह को टिकिट दिया था। इस चुनाव में ज्ञानेश्वर पाटिल 50 हजार के लगभग वोटों से चुनाव में विजयी हुए थे। मतलब बड़ा गड्डा हार के बावजूद कांग्रेस ने कवर किया था। इस बार भाजपा को खंडवा सीट पर कड़क मेहनत और मैनेजमेंट करना होगा। इतना ही नहीं उन्हें अपने ही पार्टी के प्रतिद्वंद्वीयों से भी निपटने की चुनौती रहेगी।

ये हैं ज्ञानेश्वर पाटिल

ज्ञानेश्वर पाटिल हालांकि खंडवा बुरहानपुर में पच्चीस साल से सक्रिय व बड़े पदों पर रहे हैं। वे खंडवा से सांसद के अलावा जिला पंचायत के अध्यक्ष, बुरहानपुर का पावरलूम संस्थाओं के प्रदेश स्तर के पदाधिकारी व उनकी पत्नी बुरहानपुर जिला पंचायत की अध्यक्ष रही हैं। बुरहानपुर से बागली तक उनको राजनीतिक पकड़ मजबूत रही है।

आखिर क्यों महाराष्ट्र और छत्तीसगढ से आ रही लकडी की बडी खेप

यह भी ध्यान में रहे

बड़ी बात यह भी होगी कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से स्व नंदकुमार चौहान लगभग बाई लाख वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी को मात देकर जीते थे। लेकिन उपचुनाव में कांग्रेस ने कड़ा मुकाबला देते हुए जीत का अंतर काफी कम कर दिया था। उपचुनाव में कांग्रेस से राजनारायण सिंह व भाजपा से ज्ञानेश्वर पाटिल चुनाव लड़े थे। प्रत्याशियों के रूप में दोनों दमदार थे। लेकिन जीत मोदी फेक्टर के करण हुई थी। आंकड़ों का इतिहास देखा जाए तो बीजेपी के समर्थक वोटर अधिक हैं। लेकिन 2009 में बीजेपी से कांग्रेस ने बाजी मार ली थी। तब कांग्रेस नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे अरुण यादव ने जीत हासिल की थी। उसका सबसे बड़ा कारण भाजपा का भितरघात रहा था। इस बार भी अगर कांग्रेस किसी बड़े चेहरे को टिकट देती है तो मुकाबला दिलचस्प हो सकता है।

उपचुनाव में कांग्रेस ने दी थी टक्कर

साल 2021 में 63.88 प्रतिशत मतदान हुआ था। ज्ञानेश्वर पाटिल खंडवा के नए सांसद तो बने, लेकिन पौने दो लाख लीड भी घटी थी। उस वक्त भाजपा के ज्ञानेश्वर पाटिल को 6 लाख 14 हजार 844 वोट मिले थे। कांग्रेस के राजनारायणसिंह को 5 लाख 40 हजार 086 बोट प्राप्त हुए थे। कुल मिलाकर लगभग 78 हजार 695 वोटों से भाजपा के ज्ञानेश्वर पाटिल विजयी हुए थे

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